जीवन की अनचाही समस्याओं को हल करने का एक आसान उपाय माँ शारदा की आराधना है,
ज्ञान प्राप्ति, राहु पीड़ा, शत्रु बाधा निवारण हेतु विशिष्ट प्रयोग है,
नील सरस्वती स्त्रोत
राहु का इष्ट है सरस्वती,सम्भवत: आपको यह अजीब सा लगे कि राहु का इष्ट देवता सरस्वती क्यों है,क्योंकि राहु हमारी उस बुद्धि का कारक है,जो ज्ञान हमारी बुद्धि के बावजूद पैदा होता है,
व्यक्ति की जिंदगी में कोई ना कोई शत्रु अवश्य होता है। या शत्रु प्रत्यक्ष रूप में होता है या अप्रत्यक्ष रूप से परेशान करता रहता है। हर व्यक्ति चाहता है कि उसे उसके शत्रु से छुटकारा मिले तथा जीवन में सब काम अचे तरीके से हो जाये , लेकिन ऐसा होता नहीं है।
आप भी किसी न कसी तरीके से अपने शत्रु के कारण परेशानियों का सामना कर रहे है तो आपके लिए यह नील सरस्वती स्तोत्र बहुत ही लाभदायक साबित होगा। नील सरस्वती स्तोत्र के पाठ से हम अपने शत्रु पर विजय प्राप्त कर सकते हैं।
यह स्तोत्र हमारे शत्रुओं का नाश करने में सक्षम है। इस स्तोत्र का पाठ करने से धन चाहने वाला धन प्राप्त करता है और विद्या चाहने वाला विद्या प्राप्त करता तथा तर्क-वितर्क आदि का ज्ञान का विकाश होता है। प्रतिदिन इसका पाठ करता है उसके सभी शत्रुओं का नाश हो जाता है।
जो व्यक्ति इस स्तोत्र का पाठ करता है, वह आने वाले छ: महीनों में सिद्धि प्राप्त कर लेता है
जो व्यक्ति संकट में, युद्ध में, मूर्खत्व की दशा में, दान के समय तथा भय की स्थिति में इस स्तोत्र को पढ़ता है उसका सर्व कार्य सिद्ध हो जाते है।
मां नील सरस्वती का कोई भी प्रयोग, विशेष स्थिति,
या योग्य साधक के मार्गदर्शन में ही करें,
||नील सरस्वती स्तोत्र||
घोर रूपे महारावे सर्वशत्रु भयंकरि।
भक्तेभ्यो वरदे देवि त्राहि मां शरणा गतम्।।01।।
ॐ सुरासुरार्चिते देवि सिद्धगन्धर्वसेविते।
जाड्यपापहरे देवि त्राहि मां शरणा गतम्।।02।।
जटाजूटसमायुक्ते लोलजिह्वान्तकारिणि।
द्रुतबुद्धिकरे देवि त्राहि मां शरणा गतम्।।03।।
सौम्यक्रोधधरे रूपे चण्डरूपे नमोSस्तु ते।
सृष्टिरूपे नमस्तुभ्यं त्राहि मां शरणा गतम्।।04।।
जडानां जडतां हन्ति भक्तानां भक्तवत्सला।
मूढ़तां हर मे देवि त्राहि मां शरणा गतम्।।05।।
वं ह्रूं ह्रूं कामये देवि बलिहोमप्रिये नम:।
उग्रतारे नमो नित्यं त्राहि मां शरणागतम्।।06।।
बुद्धिं देहि यशो देहि कवित्वं देहि देहि मे।
मूढत्वं च हरेद्देवि त्राहि मां शरणा गतम्।।07।।
इन्द्रा दिविलसद द्वन्द्ववन्दिते करुणा मयि।
तारे ताराधिनाथास्ये त्राहि मां शरणा गतम्।।08।।
अष्टभ्यां च चतुर्दश्यां नवम्यां य: पठेन्नर:।
षण्मासै: सिद्धिमा प्नोति नात्र कार्या विचारणा।।09।।
मोक्षार्थी लभते मोक्षं धनार्थी लभते धनम्।
विद्यार्थी लभते विद्यां विद्यां तर्क व्याकरणा दिकम।।10।।
इदं स्तोत्रं पठेद्यस्तु सततं श्रद्धयाSन्वित:।
तस्य शत्रु: क्षयं याति महा प्रज्ञा प्रजा यते।।11।।
पीडायां वापि संग्रामे जाड्ये दाने तथा भये।
य इदं पठति स्तोत्रं शुभं तस्य न संशय:।।12।।
इति प्रणम्य स्तुत्वा च योनि मुद्रां प्रदर्श येत।।13।।
।।इति नीलसरस्वतीस्तोत्रं सम्पूर्णम्।।