हिन्दू धर्म मे शनिवार का बेहद महत्व है। इस दिन हम बजरंग बली को प्रसन्न करने के लिए हनुमान चालीसा का पाठ करते है जिस वजह से वो हमें प्रसन्न होकर अपनी शरण मे लेते है और हमारी दुखो को हरते है आज हम आपको बताने जा रहे है हनुमान चालीसा का इतिहास जो बेहद कम लोगो को पता होगा।
हनुमान चालीसा कब लिखी गयी ? क्या आप जानते हैं? नहीं, तो जानिये शायद कुछ ही लोगों को यह पता होगा
पवनपुत्र हनुमान जी की आराधना तो अधाकांश हिंदू लोग करते हैं। हनुमान चालीसा का पाठ भी करते हैं। पर यह कब लिखी गयी, इसकी उत्पत्ति कहाँ और कैसे हुई, यह जानकारी बहुत ही कम लोगों को होगी।
बात 1600 ईस्वी की है, यह काल अकबर और तुलसीदास जी के समय का काल था
एक बार तुलसीदास जी मथुरा जा रहे थे, रात होने से पहले उन्होंने अपना पड़ाव आगरा में डाला। लोगों को पता लगा कि तुलसीदास जी आगरा में पधारे हैं। यह सुन कर उनके दर्शनों के लिए लोगों का ताँता लग गया। जब यह बात बादशाह अकबर को पता लगी तो उन्होंने बीरबल से पूछा कि यह तुलसीदास कौन हैं।
तब बीरबल ने बताया कि, इन्होंने ही रामचरित मानस लिखा है, यह रामभक्त तुलसीदास जी हैं, मैं भी इनके दर्शन करके आया हूँ। अकबर ने भी उनके दर्शन की इच्छा व्यक्त करते हुए कहा कि मैं भी उनके दर्शन करना चाहता हूँ।
बादशाह अकबर ने अपने सिपाहियों की एक टुकड़ी तुलसीदास जी के पास भेजी और तुलसीदास जी को बादशाह का पैगाम सुनाया कि आप लालकिले में हाजिर हों। यह पैगाम सुन कर तुलसीदास जी ने कहा कि मैं भगवान श्रीराम का भक्त हूँ। बादशाह और लालकिले से मुझे क्या लेना-देना, और लालकिले जाने के लिए साफ मना कर दिया। जब यह बात बादशाह अकबर तक पहुँची तो उसे बहुत बुरी लगी। बादशाह अकबर गुस्से में लाल-ताल हो गया। उसने तुलसीदास जी को जंज़ीरों से जकड़बा कर लाल किला लाने का आदेश दिया। जब तुलसीदास जी जंजीरों से जकड़े लाल किला पहुंचे तो अकबर ने कहा की आप कोई करिश्माई व्यक्ति लगते हो, कोई करिश्मा करके दिखाओ। तुलसी दास ने कहा कि मैं तो सिर्फ भगवान श्रीराम जी का भक्त हूँ, कोई जादूगर नही हूँ जो आपको कोई करिश्मा दिखा सकूँ। अकबर यह सुन कर आगबबूला हो गया और आदेश दिया कि इनको जंजीरों से जकड़ कर काल कोठरी में डाल दिया जाये।
दूसरे दिन इसी आगरा के लालकिले पर हजारों बंदरों ने एक साथ हमला बोल दिया, पूरा किला तहस नहस कर डाला। किले में त्राहि-त्राहि मच गई, तब अकबर ने बीरबल को बुला कर पूछा कि बीरबल यह क्या हो रहा है, तब बीरबल ने कहा हुज़ूर आप करिश्मा देखना चाहते थे, तो देखिये। अकबर ने तुरंत तुलसीदास जी को काल कोठरी से निकलवाया और जंजीरें खोल दी गईं।
तुलसीदास जी ने बीरबल से कहा मुझे बिना अपराध के सजा मिली है। मैंने काल कोठरी में भगवान श्रीराम और हनुमान जी का स्मरण किया, मैं रोता जा रहा था। और रोते-रोते मेरे हाथ अपने आप कुछ लिख रहे थे। यह 40 चौपाई, हनुमान जी की प्रेरणा से लिखी गई हैं। कारागार से छूटने के बाद तुलसीदास जी ने कहा कि जैसे हनुमान जी ने मुझे कारागार के कष्टों से छुड़वाकर मेरी सहायता की है उसी तरह जो भी व्यक्ति कष्ट में या संकट में होगा और इसका पाठ करेगा, उसके कष्ट और सारे संकट दूर होंगे। इसको हनुमान चालीसा के नाम से जाना जायेगा।
अकबर बहुत लज्जित हुआ और तुलसीदास जी से माफ़ी मांगी, पूरी इज़्ज़त और पूरी हिफाजत, लाव-लश्कर से उनको मथुरा भिजवाया
इस तरह से हनुमान चालीसा का पाठ 1600 ईस्वी से पढ़ा जा रहा है और जो कोई भी मंगलवार और शनिवार को यह पाठ नित्य रूप से पढ़ता है तो बजरंग बली संकटमोचन के रूप में उंसके कष्टों को हर लेते है और उसे सुख एवं समृद्धि प्रदान करते है।